काले आसमां में गरजते बादलों के बीच चमकती बिजली, सर्दी का मौसम और यह बिन मौसम घनघोर बरसात ने मेरा बाइक चलाना बेहद मुश्किल कर दिया था। चेहरे पे पड़ती बारिश की बूँदें बर्फ से भी ठंडी थी। ठंडी हवाओं को चीरता हुआ में ९० की रफ़्तार में अपनी बाइक उस सुनसान सड़क पर बेहताशा भगाये जा रहा था। मेरी मंज़िल थी Maryland Asylum जहाँ थी वेदिका, पिछले २ महीने की मसक्कत और खोजबीन करने के बाद मैं ढूंढ पाया उसे और मुझे जानना था वह सच जो खोलेगा माईकल कब्रिस्तान के उस राज़ को जो पिछले १६ साल से वक़्त की तिज़ोरी और वेदिका के जेहन में कैद था।
२ घंटे के बाद मैं पहुंचा Maryland Asylum.
मेन हॉल से गुज़रता हुआ मैं गलियारे में पहुँचा जहाँ डॉक्टर निधि ने एक नज़र देखा और पास खड़े वार्ड बॉय को इशारा किया, वार्ड बॉय मेरे पास आया और कहा "चलिए सर" मैं उसके पीछे चल दिया। बरसो पुरानी लिफ्ट से मुझे वह हॉस्पिटल के बेसमेंट नंबर ३ में लेके गया बसमेंट का नज़ारा किसी हॉरर मूवी के सीन जैसा था पुरे बेसमेंट में सिर्फ २ टूयूब लाइट थी और उसमे से भी एक ही जल रही तो कभी बुझ रही थी। वार्ड बॉय ने यह सब देखा और कहने लगा यह लाइट फिर खराब हो गयी, क्या करे साहब कितनी बार ठीक करवाई है मैंने पर हर बार खराब हो जाती है लगता है यहाँ के मरीजों को अँधेरे में ही रहना पसंद है। चलते-चलते हम दोनों बेसमेंट के आखिरी रूम पर पहुँचे, रूम नंबर ६६६ लोहे का दरवाज़ा और अंदर बाहर देखने के लिए सिर्फ एक छोटी सी खिड़की, वार्ड बॉय ने कहा साहब मैं अभी टोर्च ले के आता हूँ आप अंदर मत जाना इतना कह कर वह चलते चलते अँधेरे में गुम हो गया, मैंने मन ही मन कहा रूम खुला ही कहाँ है जो जाऊँगा। १० मिनट तक इंतज़ार करने के बाद भी जब वार्ड बॉय नहीं आया तब मैंने रूम के अंदर देखने की कोशिश की अंदर बिलकुल काला घुप अँधेरा था बस किसी की धीमी धीमी आवाज़ बार-बार आ रही थी।
मैं जैसे ही पलटा वार्ड बॉय मेरे सामने खड़ा था मैं कहा तुमने तो मुझे डरा दिया उसका जवाब था "डर क्या होता है यह अभी तक आपने जाना ही नहीं है", इतने कहते ही रूम का दरवाज़ा अपने आप खुल गया मैंने दरवाज़े के हैंडल की तरफ देखा और फिर वार्ड बॉय को देखा पर वार्ड बॉय वहाँ नहीं था, जैसे मानो की वह वहाँ था ही नहीं, दरवाज़े की चरमराहट की आवाज़ पुरे बेसमेंट में गूँज रही थी और यह मौहोल और डरवाना हो गया था। रूम का दरवाज़ा खुला और धीमी आवाज़ तेज़ हो गयी पहले तो मुझे कुछ समझ नहीं आया पर ध्यान से सुनने पर मैंने सुन्ना कोई बार-बार एक ही लाइन बुदबुदा रहा था "वह मुझे ले जाएगा"। मोबाइल की फ़्लैश लाइट जला के मैंने अंदर देखने की कोशिश की पर मुझे अंदर कोई नहीं दिखा बस पूरी दीवार पर यह लिखा था की "वह मुझे ले जाएगा"।
तभी मेरे कानो में किसी ने कहा "स्वागत है आपका जहनुम में" मैं पीछे मुड़ा और मेरी सामने खड़ी थी एक औरत और वह बेहद गुस्से भरी नज़रों से मेरी ओर देख रही थी उसका हाल ऐसा था की जिसे देखकर किसकी की भी रूह काँप जाए। उसके पुरे शरीर पर चोट के निशान थे, जगह जगह से किसी पैनी चीज़ मानो चाक़ू से काटा गया हो, उसके आँखें अंदर की तरफ धंसी हुई, खुले बाल, सूखे फटे होंठ, उसके सीने पर बना एक अजीब निशान जिससे खून निकल रहा था उसके हाथ में टूट हुआ काँच का एक टुकड़ा था। उसने वह काँच का टुकड़ा अपने सीने में घुसा दिया और उस निशान पर बार बार घुमाने लगी जिससे खून की बौछार हो गयी। मैं अपने आप को संभाल पाता उस पहले ही उसने मुझ पर वार कर दिया और उसने उस काँच के टुकड़े को मेरी हथेलियों के आर-पार कर दिया, दर्द के मारे मेरी एक भयानक चीख निकली जिस से पूरा बेसमेंट गूँज उठा। अगले ही पल वार्ड बॉय ने मुझे झँकझोर के पूछा "क्या हुआ साहब, क्या हुआ"? मैंने कहा वह लड़की, उसने कहा "साहब यहाँ कोई लड़की नहीं है, " आज शुक्रवार है मैं भी कितना भुलक्कड़ हूँ आज ट्रीटमेंट के लिए इनको ऊपर लेके जाया जाता है। कैसा ट्रीटमेंट? मैंने पूछा उसने कहा पहले आप चलिए यहाँ से और खुद ही देख लीजिये, मैं उठा और उसके साथ चलने लगा, बेसमेंट के अंत में लिफ्ट थी लिफ्ट पर चढ़ते ही मुझे अँधेरे में गुम होती वही लड़की नज़र आयी।
वेदिका को इस हाल में देखने की मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी पर मेरे पास और कोई ऑप्शन नहीं था क्यूंकि मुझे वह उस दिन का सच जानना था। मैं उसके रूम के घुसा और घुसते ही मुझे ऐसा लग रहा था की कोई वहाँ पहले से ही मौजूद है, वेदिका अधमरी हालात में थी मुझे कुछ कहने की जरुरत नहीं पड़ी की मैं कौन हूँ। उसने मुझे देखा और सिर्फ मुझसे इतना ही कहा बचा लो मुझे। इतना कहकर वह बेहोश हो गयी मैं उसके पास खड़ा हो गया और उसकी ऊपर से नीचे तक निहारने लगा मुझसे उसकी यह हालत देखी न गयी और मैं जैसे ही बाहर जाने लगा उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और धीमे से कहा "प्लीज मुझे बचा लो वह मुझे ले जाएगा"। इतने में वार्ड बॉय फिर वहाँ आ गया और उसे बेसमेंट में ले जाने लगा मैंने रोकने की कोशिश की तो कहा "साहब इनको यहाँ नहीं रख सकते यह बहुत खतरनाक मरीज़ है कभी भी हमला कर देती है"। वह उसे बेसमेंट में ले जाने लगा और मैं यह सब चुप चाप देख रहा था। उसके रूम के बाहर में बैठा खुद को उसकी इस हालत का दोषी मान रहा था और खुद को बार-बार कोस रहा था की काश उस दिन मैं उन तीन दोस्तों को रोक देता काश यह वहाँ नहीं जाते तो आज यह सब इस हाल में नहीं होते।
मैं यह सब सोच ही रहा था की मेरे सामने से डॉ निधि गुज़री तो मैंने उनसे पूछ लिया की मैं मरीज़ से कब मिल सकता हूँ मुझे उससे बात करनी है। डॉ निधि ने कहा "आप सुबह मिल सकते है" पर आप उस पेसेंट से क्या बात करोगे वह हर बात का एक ही जवाब देती है की "वह मुझे ले जाएगा" हमने कई बार उससे पूछा की वह कौन है जो तुम्हे ले जाएगा पर वह सिर्फ एक बात-बार दोहराती है की वह मुझे ले जाएगा। मैंने पूछा उसको हुआ क्या है ? डॉ निधि ने कहा She is Suffering From Schizophrenia. मैंने चौंक के पूछा "Schizophrenia ? मतलब?", मतलब Hallucinations यह भ्र्म होना की अँधेरे में कोई खड़ा है और उसे ही सिर्फ घूर रहा है, कोई उसका नाम बार पुकार रहा है, She Can See Dead People यह ऐसी चीज़ें देखने का दावा करती है जो वहाँ मौजूद ही नहीं है Ghost And Demons All That Type Of Stuff. मैंने ऐसे कई केसेस देखे जिसमे मरीज़ ठीक भी हो जाते है पर वेदिका के केस में It's Taking Too Long Well We Are Trying Our Level Best To Cure Her, पर एक बात बताइये आप क्या लगते है वेदिका के मैंने कहा मैं उसका दोस्त हूँ स्कूल में हम एक साथ ही पढ़ते थे। डॉ निधि ने कहा दस साल हो गए है उसको यहाँ पर इन दस सालों में कोई भी नहीं आया अभी तक सिर्फ आप आये हो, शायद आपके आने से उसकी कुछ इम्प्रूवमेंट हो सके, वेल अब मुझे जाना होगा मेरे ड्यूटी खत्म हो गयी है हम सुबह मिलते है और इतना कह कर डॉ निधि वहाँ से चली गयी।
मैं भी होटल वापस जाने के लिए हॉस्पिटल के मैन गेट पर पहुँचा तो देखा की बेहद तेज़ बारिश हो रही थी और धुंध की वजह से कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। पीछे से आते वार्ड बॉय ने कहा साहब आप इतनी बारिश में नहीं जा पाओगे आप आज यहीं रुक जाओ मैंने पूछा यहाँ आसपास कोई होटल है क्या? वह हँसा अरे साहब इस वीरान जंगल में भला कौन होटल या घर बनाएगा मैंने पूछा ऐसे Situation में हॉस्पिटल स्टाफ घर कैसे जाते है ?", रात में कोई स्टाफ यहाँ नहीं रुकता सारे स्टाफ ४ बजे दिन में घर चले जाते क्यों की यह जंगली इलाका है, शहर से काफी दूर है और अँधेरा जल्दी हो जाता है सिर्फ एक गार्ड रहता है आज फ्राइडे है ECT THERAPY देनी होती है बेसमेंट -३ के मरीज़ों को इसलिए डॉ निधि और उनके साथ के डॉक्टर्स आज इतने देर तक रुके थे और शायद आपसे भी मिलना था डॉ निधि ने बताया था की कोई रूम नो ६६६ के पेशेंट से मिलने के लिए आ रहा है। इतना कह कर वह हॉस्पिटल के बाहर बने एक रूम में चला गया और मैं पास के बेंच पर बैठकर बारिश के थमने होने का इंतज़ार कर रहा था, मुझे वेदिका से मिलने की बेचैनी थी और इस बेचैनी की सोच में मेरी आँख कब लग गयी मुझे पता ही नहीं चला और मैं वही बेंच पर सो गया।
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